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डेंगू से बचाव और इलाज ।

डेंगू से बचाव और इलाज
-प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव

डेंगू एक विषाणु द्वारा उत्पन्न होने वाला रोग है, जो मच्छर द्वारा फैलता है। डेंगू मच्छर का वैज्ञानिक नाम एडीस इजिप्टी है। डेंगू दो प्रकार का होता है। डेंगू ज्वर और डेंगू रक्तस्रावी।

डेंगू ज्वर एक भयानक फ्लू जैसी बीमारी है। यह आमतौर से बड़े उम्र के बच्चों और वयस्कों को होता है, किन्तु इससे ग्रस्त रोगी की मृत्यु कभी-कभार ही होती है। डेंगू रक्तस्राव ज्वर, डेंगू का अत्यंत भयानक रूप है। इसमें रक्तस्राव होता है और मृत्यु भी हो जाती है। इस रोग की चपेट में बच्चे आते हैं। डेंगू फैलाने वाला मच्छर या तो सुबह के प्रारम्भ के समय अथवा दिन में देर से काटता है। चिकित्सकों के अनुसार चूँकि डेंगू रक्तस्राव ज्वर रोग से रोगी की मृत्यु हो जाती है, इसलिए यदि रोग के प्रारम्भिक अवस्था में रोगी चिकित्सक के पास शीघ्र पहुँच जाए तो रोगी की जान बच सकती है। वास्तव में होता यह है कि जब रोगी को समुचित चिकित्सा व्यवस्था उपलबब्ध हो पाती है, उसके पहले ही वल काल के गाल में चला जाता है।

रोग के लक्षण:
भिन्न-भिन्न रोगियों में रोग का लक्षण रोगी की आयु और स्वास्थ्य के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। नवजात और कम उम्र के शिशिओं में ज्वर के साथ शरीर पर खसरा यानी मीजिल्स के समान चित्तिकाएं या दरोरे निकल आते हैं। इन लक्षणों को एनफ्लूएन्जा, खसरा, मलेरिया, संक्रामक हेपेटाइटिस और अन्य रोगों से अलग नहीं किया जा सकता है। दूसरे बच्चे या वयस्कों में भी रोग के इसी प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं और रोग की प्रबलता मंद से तीव्र हो सकती है।

डेंगू रोग की रोकथाम:
डेंगू रोग की चपेट में न आने के लिए सावधानी रखना आवश्यक है:-
1- पानी को सदैव ढ़ाँक कर रखें। पानी यदि ठीक से ढ़ंका हुआ हो, तो डेंगू फैलाने वाले मच्छर पानी में अण्डा नहीं दे पाएँगे।
2- सेप्टिक टैंक और सोक पिट्स को ठीक तरह से सील कर दें, ताकि डेंगू मच्छर उसमें प्रजनन न कर सकें।
3- कूलर की टंकियों का पानी सदैव बदलते रहें ताकिर मच्छर उसमें अण्डे न दे सकें।
4- घर के आस-पास गंदगी और कूड़ा-कचरा न रहने दें।
5- यदि छोटे-छोटे- गड्ढ़े घर के आसपास हों, और उनमें पानी एकत्र हो जाता हो, तो उसे मिट्टी से पाट दें।

जैविक रोकथाम:
मच्छरों की रोकथाम के लिए 'कुप्पीज' जैसी मछलियों का प्रयोग किया जा सकता है, जो मच्छरों के छोटे लार्वा को भोजन के रूप में ग्रहण करती हैं। इन मछलियों को तालाबों या नालों से प्राप्त किया जा सकता है या वहाँ से खरीदा भी जा सकता है, जहाँ इन लारवा खाने वाली मछलियों को पाला जाता है। जीवाणुवीय कीटनाशी पेस्टिसाइड का प्रयोग मच्छरों को मारने के लिए किया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण:
'टीमाफॉस' बालू और कोर ग्रैन्यूल जैसे लार्वा मारक को पानी में या पानी भरे बर्तनों में रखा जाता है, ताकि मच्छरों को मारा जा सके।
मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचें: अच्छा होगा यदि आप अपने आप को मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचायें। इसके लिए निम्नलिखित उपाय को अमल में ला सकते हैं-

मास्क्यूटो क्वायल और इलेक्ट्रिक वेपर मैट्स का प्रयोग: जिस मौसम में डेंगू मच्छर का प्रकोप हो, उस मौसम में मास्क्यूटो क्वायल और इलेक्ट्रिक वेपर मैट्स प्रभावी होते हैं। इनका प्रयोग सूरज उगने के बाद अथवा दोपहर डूबने के पहले करना चाहिए क्योंकि डेंगू मच्छरों के डंक मारने का यही समय होता है।

मच्छरदानी का प्रयोग:
मच्छरदानी का प्रयोग ऐसे लोगों को करना चाहिए जो सुबह देर तक सोते हैं अथवा दिन में सोते हैं। छोटे बच्चों के लिए मच्छरदानी काप्रयोग अवश्य करना चाहिए। परमेथ्रिन कीटनाशी है। खिड़कियों अथवा दरवाजों पर परमेथ्रिन से उपचारित कपड़ा लटकाना होता है। इससे दूर भागते हैं अथवा उनकी मृत्यु हो जाती है।

डेंगू से डरे नहीं:
डेंगू से घबराना नहीं चाहिए, लेकिन यदि बुखार आ रहा हो, तो उसे नजरअंदाज न करें। स्वयं अथवा मेडिकल स्टोर से दवा खरीद कर न खाएँ और प्रशिक्षित डॉक्टर को ही दिखाएँ। बुखार होने पर अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यदि बुखार सात दिन से अधिक का हो गया हो, तो प्लेटनेट्स काउंट चेक कराएँ। प्लेटलेट्स काउंट 20 हजार से कम होने पर अथवा शरीर से रक्तस्राव होने पर रोगी को अस्पताल में अवश्य भर्ती कराएँ।

आयुर्वेदिक इलाज:
पतंललि योगपीठ के मुख‍िया एवं योगगुरू रामदेव के अनुसार डेंगू होने की दशा में एलोवेरा, गिलोय, अनार और पपीते के पत्ते का रस 50-50 मिली0 की मात्रा में मिलाकर दिन में चार बार लिया जाए, तो मरीज को लाभ होता है। इसके अलावा पानी, मट्ठा, नारियल पानी, सेब, चुकंदर का जूस पीने से भी लाभ होता है। 
'सामयिक नेहा' जुलाई-सितम्बर 2010 से साभार।

Writtern by DrZakir Ali Rajnish

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