लौंग, इलायची ऐसे खाने से, ये जानलेवा बीमारी खत्म हो जाती है
ठंड ने पैर पसारने शुरु कर दी है और कडकडाती ठंड में अक्सर सांस से संबंधित समस्याओं में तेजी आ जाती है। ठंड के मौसम में हवा में तैरते प्रदूषित कण और परागकण भी सांस लेने की समस्या को और भी ज्यादा कर देते हैं। सांस लेने की समस्या जिसे अस्थमा या दमा के नाम भी जाना जाता है, इसके इलाज के लिए अनेक पारंपरिक नुस्खों को उपयोग में लाया जाता है, आज हम भी आपको सुझाएंगे कुछ चुनिंदा हर्बल नुस्खे जिनका इस्तमाल कर इस समस्या से छुटकारा पाने में काफी मदद मिल सकती है।
अस्थमा (सांस लेने की समस्या) या दमा के संदर्भ में परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले १६ सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
लगभग ५० ग्राम अंगूर का रस गर्म करके स्वास या दमा के रोगी को पिलाया जाए तो साँस लेने की गति सामान्य हो जाती है।
यदि अजवायन के बीजों को भूनकर एक सूती कपड़े मे लपेट लिया जाए और रात तकिये के नजदीक रखा जाए तो दमा, सर्दी, खाँसी के रोगियों को रात को नींद में साँस लेने मे तकलीफ़ नही होती है।
दमा के रोगी यदि अनंतमूल की जड़ों और अडूसा के पत्तियों की समान मात्रा (३-३ ग्राम) लेकर दूध में उबालकर लें तो फ़ायदा होता है, ऐसा कम से कम एक सप्ताह तक किया जाना जरूरी है।
डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार पान के पत्तों के साथ अशोक के बीजों का चूर्ण की एक चम्मच मात्रा चबाने से सांस फूलने की शिकायत और दमा में आराम मिलता है।
गेंदा के फ़ूलो को सुखा लिया जाए और इसके बीजों को एकत्र कर मिश्री के दानों के साथ समान मात्रा (५ ग्राम प्रत्येक) का सेवन कुछ समय तक दिन में दो बार किया जाए तो डाँग- गुजरात के आदिवासी के अनुसार, दमा और खाँसी के मरीज को काफी फायदा होता है।
दमा के रोगियों को गोखरू के फल और अंजीर के फ़ल समान मात्रा में लेकर कूटना चाहिए और दिन में तीन बार लगभग ५ ग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए, दमा ठीक हो जाता है।
पालक के एक गिलास जूस में स्वादानुसार सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से दमा और श्वास रोगों में खूब लाभ मिलता है।
बड़ी इलायची खाने से खांसी, दमा, हिचकी आदि रोगों से छुटकारा मिलता है। बडी इलायची, खजूर व अंगूर की समान मात्रा लेकर, कुचलकर शहद में चाटने से खांसी, दमा और कमजोरी दूर होती है।
लहसून की २ कच्ची कलियाँ सुबह खाली पेट चबाने के बाद आधे घण्टे से मुलेठी नामक जड़ी-बूटी का आधा चम्मच सेवन दो महीने तक लगातार करने से दमा जैसी घातक बीमारी से सदैव की छुट्टी मिल जाती है।
अस्थमा के रोगी को यदि अजवायन के बीज और लौंग की समान मात्रा का ५ ग्राम चूर्ण प्रतिदिन दिया जाए तो काफी फ़ायदा होता है।
अस्थमा को दूर करने के लिए अडूसा की पत्तियों के रस को शहद में मिलाकर रोगी को दिया जाता है। इस नुस्खे से अस्थमा का इलाज काफी कारगर माना जाता है।
फेफड़ों पर इसके प्रभाव के चलते क्रोनिक ब्रोन्काइटिस और अस्थमा के इलाज के लिए प्राचीन काल से बच नामक जडी का प्रयोग किया जाता है। बच के टुकडों को चूसते रहने और प्रतिदिन बच की चाय पीने से असर काफी तेज होता है।
स्रोत: भास्कर. कॉम, लेख: डॉ दीपक आचार्य
ठंड ने पैर पसारने शुरु कर दी है और कडकडाती ठंड में अक्सर सांस से संबंधित समस्याओं में तेजी आ जाती है। ठंड के मौसम में हवा में तैरते प्रदूषित कण और परागकण भी सांस लेने की समस्या को और भी ज्यादा कर देते हैं। सांस लेने की समस्या जिसे अस्थमा या दमा के नाम भी जाना जाता है, इसके इलाज के लिए अनेक पारंपरिक नुस्खों को उपयोग में लाया जाता है, आज हम भी आपको सुझाएंगे कुछ चुनिंदा हर्बल नुस्खे जिनका इस्तमाल कर इस समस्या से छुटकारा पाने में काफी मदद मिल सकती है।
अस्थमा (सांस लेने की समस्या) या दमा के संदर्भ में परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले १६ सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
लगभग ५० ग्राम अंगूर का रस गर्म करके स्वास या दमा के रोगी को पिलाया जाए तो साँस लेने की गति सामान्य हो जाती है।
यदि अजवायन के बीजों को भूनकर एक सूती कपड़े मे लपेट लिया जाए और रात तकिये के नजदीक रखा जाए तो दमा, सर्दी, खाँसी के रोगियों को रात को नींद में साँस लेने मे तकलीफ़ नही होती है।
दमा के रोगी यदि अनंतमूल की जड़ों और अडूसा के पत्तियों की समान मात्रा (३-३ ग्राम) लेकर दूध में उबालकर लें तो फ़ायदा होता है, ऐसा कम से कम एक सप्ताह तक किया जाना जरूरी है।
डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार पान के पत्तों के साथ अशोक के बीजों का चूर्ण की एक चम्मच मात्रा चबाने से सांस फूलने की शिकायत और दमा में आराम मिलता है।
गेंदा के फ़ूलो को सुखा लिया जाए और इसके बीजों को एकत्र कर मिश्री के दानों के साथ समान मात्रा (५ ग्राम प्रत्येक) का सेवन कुछ समय तक दिन में दो बार किया जाए तो डाँग- गुजरात के आदिवासी के अनुसार, दमा और खाँसी के मरीज को काफी फायदा होता है।
दमा के रोगियों को गोखरू के फल और अंजीर के फ़ल समान मात्रा में लेकर कूटना चाहिए और दिन में तीन बार लगभग ५ ग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए, दमा ठीक हो जाता है।
पालक के एक गिलास जूस में स्वादानुसार सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से दमा और श्वास रोगों में खूब लाभ मिलता है।
बड़ी इलायची खाने से खांसी, दमा, हिचकी आदि रोगों से छुटकारा मिलता है। बडी इलायची, खजूर व अंगूर की समान मात्रा लेकर, कुचलकर शहद में चाटने से खांसी, दमा और कमजोरी दूर होती है।
लहसून की २ कच्ची कलियाँ सुबह खाली पेट चबाने के बाद आधे घण्टे से मुलेठी नामक जड़ी-बूटी का आधा चम्मच सेवन दो महीने तक लगातार करने से दमा जैसी घातक बीमारी से सदैव की छुट्टी मिल जाती है।
अस्थमा के रोगी को यदि अजवायन के बीज और लौंग की समान मात्रा का ५ ग्राम चूर्ण प्रतिदिन दिया जाए तो काफी फ़ायदा होता है।
अस्थमा को दूर करने के लिए अडूसा की पत्तियों के रस को शहद में मिलाकर रोगी को दिया जाता है। इस नुस्खे से अस्थमा का इलाज काफी कारगर माना जाता है।
फेफड़ों पर इसके प्रभाव के चलते क्रोनिक ब्रोन्काइटिस और अस्थमा के इलाज के लिए प्राचीन काल से बच नामक जडी का प्रयोग किया जाता है। बच के टुकडों को चूसते रहने और प्रतिदिन बच की चाय पीने से असर काफी तेज होता है।
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